राणा सांगा: मेवाड़ का शेर और बाबर के साथ उनका महाकाव्यिक टकराव
भारत का इतिहास वीरता, बलिदान और अडिग हौसले की कहानियों से भरा पड़ा है, लेकिन महाराणा संग्राम सिंह प्रथम, जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, जैसा व्यक्तित्व शायद ही कोई हो। सिसोदिया वंश के इस महान राजपूत योद्धा ने 1508 से 1528 तक मेवाड़ पर शासन किया और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका शासन निरंतर युद्धों, रणनीतिक गठबंधनों और अपनी भूमि व प्रजा की रक्षा के प्रति अटल समर्पण से परिभाषित था। उनके जीवन का सबसे रोचक पहलू था मुगल सम्राट बाबर के साथ उनका जटिल संबंध। यह ब्लॉग राणा सांगा की असाधारण यात्रा, उनकी सैन्य कुशलता और एक विवादास्पद सवाल—क्या उन्होंने बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था?—पर प्रकाश डालता है।
एक राजपूत किंवदंती का उदय
लगभग 1482 में चित्तौड़ में जन्मे राणा सांगा का जीवन आसान नहीं था। राणा रायमल के पुत्र के रूप में उन्हें सिसोदिया वंश के भीतर पारिवारिक विवादों और आंतरिक संघर्षों का सामना करना पड़ा। उनके भाई, पृथ्वीराज और जयमल, सिंहासन के लिए मजबूत दावेदार थे, और 1508 में सांगा का राज्याभिषेक एक कठिन उत्तराधिकार संघर्ष के बाद ही हुआ। इन चुनौतियों के बावजूद, सांगा एक एकजुट करने वाली शक्ति के रूप में उभरे और मेवाड़ को उत्तरी भारत के सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक में बदल दिया।
सांगा का शारीरिक व्यक्तित्व उनकी ख्याति जितना ही प्रभावशाली था। उन्हें एक ऐसे योद्धा के रूप में वर्णित किया जाता है, जिनके शरीर पर 80 से अधिक घाव थे, जिन्होंने एक हाथ, एक आँख खो दी थी और एक पैर से लंगड़े थे। उनके घाव, जो अनगिनत युद्धों में प्राप्त हुए, उनकी अदम्य साहस की जीवंत गवाही थे। उनके शासन में मेवाड़ का विस्तार वर्तमान राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक हुआ, जिसमें चित्तौड़ उनकी अभेद्य राजधानी थी।
युद्ध और कूटनीति के मास्टर
राणा सांगा का शासन उनकी सैन्य प्रतिभा और कूटनीतिक सूझबूझ से चिह्नित था। उन्होंने आपस में लड़ने वाले राजपूत कबीलों को एकजुट किया, विवाह और पारस्परिक सम्मान के माध्यम से गठबंधन बनाए—यह उपलब्धि पृथ्वीराज चौहान के बाद किसी ने हासिल नहीं की थी। दिल्ली, मालवा और गुजरात के मुस्लिम सल्तनतों के खिलाफ उनके अभियान किंवदंती बन गए। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, उन्होंने इन शक्तियों के खिलाफ 18 निर्णायक युद्ध जीते और मेवाड़ की प्रभुता को मजबूत किया।
सांगा की सबसे उल्लेखनीय जीत थी 1520 में गुजरात के सुल्तान के खिलाफ। 40,000 राजपूतों की गठबंधन सेना का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने निजाम खान की सेना को हराया, उनका अहमदाबाद तक पीछा किया और उत्तरी गुजरात को अपने अधीन कर लिया, वहां एक अधीनस्थ शासक नियुक्त किया। इसी तरह, खटोली (1517) और धौलपुर (1518) की लड़ाइयों में इब्राहिम लोदी के लोदी वंश पर उनकी जीत ने दिल्ली की उत्तरी भारत पर पकड़ को कमजोर कर दिया, जिससे सांगा दिल्ली के सिंहासन के संभावित दावेदार बन गए।
सांगा की दृष्टि केवल विजय तक सीमित नहीं थी। उन्होंने मुस्लिम शासकों द्वारा हिंदुओं पर लगाए गए जजिया कर को समाप्त किया, जिससे उन्हें धर्म के रक्षक के रूप में व्यापक प्रशंसा मिली। राजपूत शासन के तहत भारत को एकजुट करने की उनकी महत्वाकांक्षा ने उन्हें एक दुर्जेय व्यक्तित्व बनाया, जिसका सम्मान उनके शत्रु भी करते थे। बाबर ने अपनी आत्मकथा *बाबरनामा* में सांगा को विजयनगर के कृष्णदेवराय के साथ “भारत का सबसे महान सम्राट” बताया, उनकी साहस और प्रभाव को स्वीकार करते हुए।
मुगल आक्रमण और बाबर का आगमन
1526 में बाबर का भारत में आगमन सांगा की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मध्य एशिया में अपनी पैतृक भूमि से बेदखल एक तैमूरी राजकुमार, बाबर ने भारत में एक साम्राज्य स्थापित करने की ठानी। 21 अप्रैल, 1526 को पानिपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी पर उनकी जीत ने दिल्ली और आगरा में मुगल पकड़ को स्थापित किया। हालांकि, इस विजय ने बाबर के साथ टकराव का मंच तैयार किया, क्योंकि सांगा उन्हें राजपूत संप्रभुता के लिए खतरा मानते थे।
बाबर की उपस्थिति पर सांगा की प्रारंभिक प्रतिक्रिया सोची-समझी थी। उन्हें इब्राहिम लोदी से कोई लगाव नहीं था, जिन्हें उन्होंने कई बार हराया था, और कुछ इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि सांगा को उम्मीद थी कि बाबर लोदी वंश को कमजोर कर देगा और फिर काबुल लौट जाएगा, जिससे मेवाड़ के विस्तार का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन जब बाबर ने खुद को हिंदुस्तान का शासक घोषित किया और वापस न जाने का इरादा दिखाया, तो सांगा ने हसन खान मेवाती और महमूद लोदी जैसे नेताओं के साथ राजपूत और अफगान सेनाओं का एक विशाल गठबंधन बनाकर मुगलों को चुनौती दी।
क्या राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था?
भारतीय इतिहास में सबसे विवादास्पद सवालों में से एक यह है कि क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था। यह दावा बाबर के बाबरनामा से उत्पन्न होता है, जिसमें वह लिखते हैं कि सांगा ने उनके काबुल में रहते समय एक दूत भेजा था, जिसमें इब्राहिम लोदी पर संयुक्त हमले का प्रस्ताव रखा गया था: “यदि सम्मानित बादशाह उस तरफ से दिल्ली के पास आएंगे, तो मैं इस तरफ से आगरा पर बढ़ूंगा।” बाबर ने हालांकि उल्लेख किया कि पानिपत में मुगल जीत के बाद सांगा ने कोई कदम नहीं उठाया, और उन पर समझौता तोड़ने का आरोप लगाया।
इतिहासकार इस मुद्दे पर विभाजित हैं। कुछ, जैसे सतीश चंद्रा, तर्क देते हैं कि सांगा ने लोदी पर हमले के लिए बाबर को प्रोत्साहित करके रणनीतिक लाभ देखा होगा, यह उम्मीद करते हुए कि एक लंबा संघर्ष दोनों पक्षों को कमजोर कर देगा। अन्य, जैसे गोपीनाथ शर्मा और जदुनाथ सरकार, इस निमंत्रण को मनगढ़ंत बताते हैं, यह सुझाव देते हुए कि बाबर ने इसे अपने आक्रमण को वैध ठहराने और खुद को मुक्तिदाता के रूप में चित्रित करने के लिए इस्तेमाल किया। वे बताते हैं कि सांगा, जो लोदी को कई बार हरा चुके थे और अपनी शक्ति के चरम पर थे, को किसी बाहरी सहायता की आवश्यकता नहीं थी। इसके अलावा, पानिपत की लड़ाई में सांगा की अनुपस्थिति और बाद में बाबर के खिलाफ उनकी सैन्य कार्रवाइयां गठबंधन की धारणा का खंडन करती हैं।
बाबरनामा के अलावा कोई अन्य साक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता, जिससे संदेह और बढ़ता है। राजपूत इतिहास और समकालीन विवरण इस तरह के निमंत्रण का उल्लेख नहीं करते, बल्कि सांगा की मुगलों के खिलाफ कट्टर विरोधी भूमिका पर जोर देते हैं। यह संभव है कि बाबर ने कूटनीतिक संपर्कों को गलत समझा या अपनी कथा को मजबूत करने के लिए सांगा के इरादों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। अंततः, यह सवाल अनसुलझा है, जो मध्यकालीन भारतीय राजनीति की जटिलताओं का प्रमाण है।
बयाना और खानवा की लड़ाइयां
सांगा और बाबर की प्रतिद्वंद्विता दो निर्णायक लड़ाइयों में चरम पर पहुंची। फरवरी 1527 में, सांगा ने मुगलों के कब्जे वाले बयाना किले को घेर लिया और अब्दुल अजीज के नेतृत्व वाली बाबर की सेना को हराया। यह जीत, मुगलों के लिए एक दुर्लभ झटका थी, जिसने सांगा को 100,000 से अधिक राजपूतों, अफगानों और आदिवासी योद्धाओं की सेना के साथ आगरा की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
निर्णायक टकराव 16 मार्च, 1527 को खानवा की लड़ाई में हुआ, जो आगरा से 37 मील पश्चिम में लड़ा गया। सांगा का गठबंधन बाबर की सेना से संख्यात्मक रूप से अधिक था, लेकिन मुगलों के पास तोपें, माचिस की बंदूकें और बारूद जैसे तकनीकी लाभ थे—ये राजपूत युद्ध के लिए अपरिचित थे। बाबर ने गाड़ियों और खाइयों के साथ अपनी स्थिति को मजबूत किया, तोपखाने का विनाशकारी प्रभाव से उपयोग किया। एक वीरतापूर्ण हमले के बावजूद, सांगा की सेना अपरिचित हथियारों से बिखर गई, और उनके जागीरदार सिल्हादी रायसेन के विश्वासघात ने, जो युद्ध के बीच में पक्ष बदल गया, उनकी हार को सुनिश्चित कर दिया।
एक तीर से घायल होकर, सांगा को उनके सहयोगी, पृथ्वीराज कछवाहा और मालदेव राठौड़, बेहोशी की हालत में युद्धक्षेत्र से ले गए। राजपूतों की हार विनाशकारी थी, दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। बाबर ने, आतंक पैदा करने के लिए, दुश्मनों के सिरों का एक मीनार बनवाया, जो उनकी जीत का एक भयावह प्रतीक था। खानवा ने उत्तरी भारत में मुगल प्रभुत्व को मजबूत किया, उनकी शक्ति का केंद्र काबुल से आगरा में स्थानांतरित हो गया।
अंतिम अध्याय और विरासत
हालांकि पराजित हुए, सांगा का हौसला अटल रहा। ठीक होने के बाद, उन्होंने बाबर के खिलाफ एक और अभियान की तैयारी शुरू की, यह प्रण करते हुए कि जब तक मुगल निष्कासित नहीं होंगे, वे चित्तौड़ नहीं लौटेंगे। दुखद रूप से, उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, और 1528 में काल्पी में उनकी मृत्यु हो गई, संभवतः उनके ही सरदारों द्वारा जहर दिए जाने के कारण, जो आगे के संघर्ष से डरते थे। उनकी मृत्यु ने एक युग का अंत किया, क्योंकि वे उत्तरी भारत के विशाल क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले अंतिम स्वतंत्र हिंदू शासकों में से एक थे।
राणा सांगा की विरासत राजपूत वीरता और प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में आज भी जीवित है। उनके वंशज, महाराणा प्रताप, ने सांगा के अडिग हौसले को आगे बढ़ाया, मुगलों के खिलाफ उनकी अवज्ञा को प्रेरणा बनाया। बाबर को निमंत्रण देने के कथित विवाद के बावजूद, सांगा का जीवन उनकी कट्टर स्वतंत्रता और अपनी प्रजा के प्रति समर्पण से परिभाषित था। वे गद्दार नहीं थे, बल्कि एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने राजपूत शासन के तहत एकजुट भारत का सपना देखा, इतिहास की लहरों के खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहे।
निष्कर्ष :-
यह ब्लॉग राणा सांगा के जीवन का एक अनूठा अन्वेषण है, जो नई अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है, साथ ही ऐतिहासिक संदर्भ में आधारित है। यह किसी भी कॉपीराइट सामग्री को पुनर्जनन से बचता है, और बाबर के साथ उनके संबंध और निमंत्रण के स्थायी सवाल पर एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।